अभी कुछ ही दिन हुए हैं अपने माननीय वित्त मंत्री महोदय श्री प्रणब मुखर्जी को अपना साल 2010-11 का बजट पेश किए हुए।बजट में उन्होंने व्यव्सथा रखी है कि भारत की विकास दर को 9 फीसदी से उपर पहुँचाया जाएगा और उस के लिए समस्त संसाधन उपयोग में लाए जाएँगे।
इस उद्देशय की पूर्ति के लिए उन्होंने लगभग 11.5 लाख करोड़ की बजट की व्यव्सथा भी की है।यूँ तो देखा जाए तो अनुभवी रहे वित्तमंत्री भारतीय अर्थवय्वसथा के विकास के लिए करोड़ों करोड़ रुपए झोंक चुके हैं लेकिन नतीजा हम सबके सामने है।वित्तमंत्री आते हैं, कर लगाते हैं, सरकारी अधिकारीओं को खुला खर्च करने की छूट देते हैं और जनता की खून पसीने की कमाई भांग के भाड़े में चली जाती है मगर इस सब के बावजूद भी देश के आम गरीब तबके का भला तो अभी तक नहीं हुआ है और उसे अभी भी कमाई करके ही खाना पड़ता है और पता नहीं कितने ही भारतीयों को भूखे पेट ही सोना पडता है।
उपर से महँगी होती खाद्य सामग्री ने और जनता की नींद हराम की हुई है।वित्त मंत्री जी और उनका सहयोगी रिज़र्व बैंक कहता है कि वो ब्याज दरें घटा बढ़ा कर या किसी भी तरीके से अर्थ वय्वसथा को सुचारू रखने की कोशिश कर रहे हैं मगर वो खाद्य वस्तुओं पर टैक्स कम करके जनता को बोझ से नहीं बचाना चाहते।
शायद आम जनता को ये मालुम ना हो कि आज यदि वो 100 रुपए की वस्तु खरीदती है तो उसे कम से कम 11 रुपए वैट के रूप में सरकार को तो भुगतान करने ही पड़ते हैं।ऊपर से राज्य का कर और आयकर अलग से।पैट्रोल और डीज़ल की स्थिति तो इस से भी अलहदा है क्यों कि उस में आम जनता लगभग 40 फीसदी तो टैक्स का ही भुगतान करती है।
यदि इन्हीं करों को वय्वसिथत कर लिया जाए तो आम आदमी को काफी राहत मिलेगी।सरकार की उपक्रमों को कर्ज़ की नीति भारत में अमीरी गरीबी की खाई को बढाने में लगी है ।कम ब्याज दरों पर जिनको भी लोन मिलता है वो सब के सब हैं बड़े-बड़े उद्योगपति या फिर फिक्की और ऐसोचैम जैसे अन्य संगठन।कर्ज़ के असली हकदार आम आदमी को तो बैंक अपनी देहली पर भी नहीं चढ़ने देते।
बैंको से यदि किसी गाड़ी के लिए, प्लाट के लिए या फिर किसी संपत्ति की खरीद के लिए कर्ज़ लेना हो तो वो चुटकियों में हासिल हो जाता है।ये सारा पैसा इन्हीं टाटा, अम्बानी, कुशलपाल सिंह(डीएलएफ के संस्थापक) की जेब में ही जाता है।इस से इन लोगों की बड़ी-बड़ी आटो कंपनीयों के सकूटर, कार, बाईक, ट्र्क और अन्य संपत्तियाँ ही बिकती हैं।ऐसा करके सरकार इन लोगों की जेबें भर रही है जबकि आम लोगों पर टैक्स का बोझ लाद रही है।
यदि आम आदमी से पैसा चुकाने में देरी हो जाए तो बैंक अपनी वाली पर उतर आते हैं और गाड़ी, प्लाट या जायदाद को ज़ब्त कर लेते हैं और उसे किसी तीसरे बकरे को बेच कर अपना मुनाफा पक्का करने में जुट जाते हैं।उस से इन्हीं उद्योगपतियों का ही आर्थिक विकास होता है जबकि आम आदमी जो पहले सी ही मरा हुआ जिन्दगी का बोझ ढो रहा है, वह और मरता ही जा रहा है।
कारण चाहे जो भी हो देश की वंचित आबादी जब तक समृद्द नहीं होगी तब तक देश का वास्तविक आर्थिक विकास नहीं हो सकता।इस लिए वित्त मंत्री को चाहिए कि वो टैक्स दरों को कुछ ऐसा बनाएँ कि उपभोक्ता को उसका भुगतान ना करना पड़े नहीं तो ये महँगाई दिनों दिन बढ़ती रहेगी और देश में बढ रही अमीरी और गरीबी की खाई और भी बढ़ जाएगी और अमीर और गरीब की खाई ज्यादा बढ़ी तो देश में फिर से अन्दरूनी टकराव की स्थिति पैदा हो जाएगी जैसी कि अभी नक्सलीग्रस्त इलाकों में है और उस वक्त स्थिति को संभालना बेहद मुशिकल हो जाएगा।इसलिए अभी भी वक्त है कि अभी से केंद्र सरकार भविष्य के प्रति सचेत हो जाए।
आपका लेख- आर्थिक स्थिति का अद्बुत विश्लेषण।
ReplyDeleteदेश का दुर्भाग्य ही तो यह है कि बजट गरीब को नहीं अमीर की सहूलियत को देखकर बनाया जाता है।
विल्कुल सही कहा आपने...
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....
यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
गरीब का पेट भर जाए, रहने को घर मिल जाए और पहनने को कपड़ा मिल जाए वही असली विकास है।
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