Saturday, August 15, 2009

दिल ही तो है न संगो खिस्त

दिल ही तो है न संगो खिस्त(संगमरमर के पत्थर का टुकड़ा), दर्द से भर आए न क्यूँ
बिल्कुल यही एहसास हुआ जब रविवार की रात मैने देखा कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला रीयल्टी शो 'इंडियाज़ गोट टेलैंट'।उस समय इस के एपिसोड का प्रसारण हो रहा था।

उस की थीम थी भारतीय सवतंत्रता दिवस जिस में प्रिंस डांस ग्रुप भी पहुँचा।इस ग्रुप की प्रस्तुति देखकर तो शो के जजों तक की आँखों में पानी आ गया था।सिर्फ जज ही नहीं मुझे यकीन है कि इस कार्यक्रम को देख रहे लगभग सभी दर्शकों के हाव भाव प्रिंस डांस ग्रुप की प्रस्तुति के बाद ऐसे होंगे।

इस के पीछे कारण ये है कि इस डांस ग्रुप में दो विकलांग भी शामिल हैं जिन्होंने जी तोड़ मेहनत करके आकर्षक प्रस्तुति दी।इस ग्रुप में शामिल नौजवान भारतीय राज्य उड़ीसा के बेगमपुरा से ताल्लुक रखते हैं तथा आम मज़दूर वर्ग का प्रतिनिध्त्व करते हुए ये ग्रुप इस स्तर तक पहुँचा।

इस ग्रुप ने जो प्रस्तुति दी वो आम भारतीयों की एकता को प्रदर्शित करती है।वो प्रदर्शित करती है कि हम भारतीय धर्म, जाति, रंग तथा वर्ण के भेद पर बंटने वालों में से नहीं है।ठीक है कि रीयल्टी शोज़ के जजों का सारा भाषण रटा रटाया रहता है मगर इतवार को जो देखा उस में कहीं पर भी ऐसा नहीं लगा कि ये जज जो इस ग्रुप की प्रस्तुति के विशलेष्ण के लिए बैठे हैं उनके हाव-भाव कहीं से भी कृत्रिम नहीं दिखाई दिए।

वहां लगभग भारत के हर कोने के, हर वर्ग के लोगों ने प्रस्तुति दी।इन्हें देख कर खास करके प्रिंस डांस ग्रुप को देख कर लगा कि कसाब जैसे आतंकीयों, उस के आकाओं और भारत को नेस्तोनाबूद करने की सोच रखने वालों को ये प्रोग्राम अवश्य ही देखना चाहीए ताकि उन्हें तो मालुम पड़े कि भारत के हर कोने के लोगों में इतना शारीरिक सामर्थ्य है कि वो उनकी कुटिल चालों को नेस्तोनाबूद करते हुए अपने हौंसले बुलन्द रखेंगे कयोंकि भारत के बारे में अक्सर ही कहा जाता है

'ये दिल वालों की बस्ती है, ये बस्ते बस्ते बसती है।
गम को खुशी में ढाल दे जो, भारत की ऐसी हस्ती है।।"

आज की तरक्की निशचित की थी कल के शहीदों ने

15 अगस्त 1947 की आधी रात को अंग्रेजी चंगुल से आज़ाद हुआ भारत आज तरक्की के शिखर पर है। भारत ने तकनीक के लगभग हर क्षेत्र में अपना परचम फहराया है।

इस के तकनीकी वैज्ञानिकों ने इसे तकनीक के क्षेत्र में बुलन्दीयों पर पहुँचाया है। अक्तूबर 2008 में भेजा गया भारतीय चन्द्र अभियान चन्द्रयान-1 तो इस की सिर्फ एक ही मिसाल है।

भारतीय पनडुब्बी 'अरिहंत' जो कि 1999 में वाजपेयी सरकार दुआरा प्रस्तावित नयी परमाणु नीति के अंतर्गत निर्धारित समय से पहले 26 जुलाई को कारगिल दिवस की जयंती के अवसर पर समंदर में उतारी गई है। यह पनडुब्बी पूर्ण स्वदेशी तकनीक पर आधारित है जिस में थोड़ी बहुत विदेशी मदद भी हासिल की गई है।

रूस के सहयोग से बनाई गई सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस का उन्नतीकरण अभी भी जारी है और भारत इसके दो संस्करण पहले ही अपनी थलसेना तथा जलसेना में शामिल कर चुका है जबकि तीसरा संस्करण भारत को ऐसी तकनीकी मिसाइल वाला एकमात्र एशियाई देश बना देगा।

इसके अलावा देश में चल रहे बुनियादी निर्माण विकास कार्यक्रम जैसे कि मेट्रो रेल परियोजना, सड़क परियोजनाएँ, बिजली परियोजनाएँ, परमाणु परियोजनाएँ आदि भारतीय तरक्की का शिखर बनने को आतुर हैं।

इतना ही नहीं भारत ने आर्थिक क्षेत्र में जो प्रगति की है वह तो पूरी दुनिया के सामने मिसाल है क्योंकि जहाँ एक ओर पूरी दुनिया आर्थिक मंदी का शिकार हुई है और अभी भी उससे बाहर निकलने के लिए प्रयासरत है तो दूसरी ओर भारत पर मंदी का कम असर हुआ और इससे उबरने वालों में हमारा देश अग्रणी है।

इसका कारण है हमारे आर्थिक विशेषज्ञों की व्यूह रचना जो उन्होंने रची। इसी के चलते आज भारत को विदेशों से अनाज का कम मात्रा में आयात करना पड़ रहा है। यहाँ के शॉपिंग मालों और गोदामों में तो इतने खाद्य पदार्थ हैं कि युद्ध की स्थिति में इन्हें कई महीनों तक इस्तेमाल किया सके।विदेशों में जहां लोग रोजगार गँवा रहे हैं वहीं भारत में इस साल हजारों लोगों को नौकरी पर रखा गया।

इन सबके अलावा शीर्ष भारतीय वैज्ञानिक और इसरो प्रमुख जी. माधवन नायर ने आईआईटी करके निकले विद्यार्थियों के सामने कई परियोजनाएँ पेश की हैं जिनमें शामिल है नैनो तकनीक पर आम लोगों के इस्तेमाल के लिए शोध, भारत द्वारा बनाया जाने वाला उपग्रह संजाल, अंतरिक्ष में उपग्रह आदि भेजने के लिए रॉकेट ईंधन में परिवर्तन के लिए शोध जैसे कार्य प्रस्तुत किए हैं।

नायर के दिखाए हुए कार्य भी हम आज नहीं तो कल पूर्ण कर लेंगे मगर हमें इस तरक्की के काबिल बनाने वाले हैं हमारे वो महान शहीद जो खुद तो आन्दोलन करते हुए शहीद हो गए मगर हमें जाते-जाते एक सुखमय एवं उजला जीवन दे गए। सो आज स्वाधीनता की इस 62वीं वर्षगाँठ के पर्व को शान से मनाएँ और उन्हें नमन करें क्योंकि हमारी आज की तरक्की की नींव उन्होंने ही रखी थी।

हम ये स्वाधीनता दिवस मात्र इसलिए नहीं मनाएँ कि आज के दिन राष्ट्रीय छुट्टी है बल्कि इस लिए अपनी भावी पीढ़ी को भी बताएँ के हमारे आज के सुख चैन के लिए वो फांसी के तख्ते पर झूल गए क्योंकि किसी ने सच ही कहा है "जो कौम अपने शहीदों को भूल जाती है वो समूल नष्ट हो जाती है।"