Wednesday, May 20, 2009

ज़रा ठहरिए! ये पटड़ी भी अपनी है

यूँ तो हमें अपने भारतवर्ष में हर कस्बे, शहर, नगर तथा गांव में कचरे के ढ़ेर मिलेंगे मगर मेरा ख्याल था कि चलो कम से कम हमें रेल की पटड़ी पर तो कचरा नहीं मिलेगा.

मुझे याद है कि मेरे कस्बे के लोग सुबह सवेरे उठते सार ही मुँह हाथ धो कर निकल पड़ते हैं सुबह की सैर के लिए, क्यूँकि कस्बे की रेल पटड़ीयों के आसपास घने वृक्ष हैं जिनकी सुबह की ताज़ी हवाओं के झोंके मदमस्त कर देते हैं, सो उन्हें भी उन प्राकृतिक हवा का लुत्फ लेने में आनन्द आता है.

मैं भी बीते कुछ वर्षों से रेल से यात्रा करता आ रहा था क्यों कि मेरी नौकरी इन्दौर जो कि मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कही जाती है में लगी थी.

पिछले दिनों मेरा भोपाल भी जाना हुआ.इस यात्रा ने तो मेरा भ्रम ही तोड़ दिया.क्यों कि मैं मुगालते में था कि मुझे इस तरफ हरियाली के दर्शन होंगे जैसा कि मैने सुना था और जैसा कि टीवी के विज्ञापनों में अक्सर दर्शाया जाता रहा है कि हिन्दुस्तान का दिल देखो.

मगर मुझे हिन्दुस्तान के इस दिल की हालत देख कर दुख हुआ.कारण था प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत इस मनोरम वादीयों वाले हरित प्रदेश की राजधानी भोपाल में रेल पटड़ीयों केस इर्द गिर्द पड़ीं प्लास्टिक की पन्नीयां जो मानो कह रही हों कि हम ऐसे कोलैस्ट्रोल है जो हिन्दुस्तान के दिल की धड़कन को ब्लाक करके रख देंगे.

जब मैनें इस कचरे के कारण की तरफ ध्यान दिया तो मैनें पाया कि रेलयात्री जो भी प्लास्टिक की पन्नी या प्लास्टिक के कप, प्लेट, गुटखे के पाउच, तथा अन्य प्लास्टिक की वस्तुएं उपयोग करते उन्हें उपयोग के बाद चलती रेलगाड़ी से बाहर फेंक देते.

इस के अलावा गाड़ी में जो भी सफाई करने के लिए भिखारी वगैरह आते हैं वो भी कचरे को चलती गाड़ी से बाहर फेंक देते हैं.यही देश के दिल के इस कोलैस्ट्रोल का कारण है.

मुझे ये तनिक भी अच्छा न लगा.कुछेक यात्रीओं को जो मेरे अगल बगल में बैठे थे, मैने समझाया भी तो उन्होंने मेरी सलाह मानी भी और वैसा ही किया जैसा मैने उनको कहा था.

मैनें उन्हें समझाया कि पटड़ी पर पहुँचने वाला गैर प्लास्टिक कचरा अर्थात खाने पीने की वस्तुएँ तो किसी तरीके से नष्ट हो ही जाता है जिन्हें हमारे कुदरती सफाई कर्मी अर्थात सूक्षम जीव जिन्हें हम बैक्टीरीआ के रूप में जानते हैं नष्ट कर देते हैं मगर प्लास्टिक का कचरा तो किसी भी रूप में नष्ट नहीं हो पाता.उल्टे ये रेल पटड़ी के आस पास पहुंच कर वहां उगने वाले असंख्य पेड़ पौधों के लिए मुसीबतें खड़ी कर देता है.

मसलन ये जमीन पर गिर कर उस जमीन को हवा और नमी के प्रभाव से दूर करते हैं जो जमीन की उर्वरक क्षमता को बरकरार रखने के लिए और पेड़, पौधों के पोषण के लिए जरूरी है.

ये वही पेड़ पौधे हैं जो हमें भीषण गर्मी में भी रेल यात्रा के दौरान सवारी डिब्बा और सामान्य शयनायान श्रेणी की बर्थ पर लू के थपेड़ों से बचाते हैं.

सो आदरणीय रेलयात्रीओं से विनम्र निवेदन है कि प्लास्टिक या ऐसा ही अन्य कचरा(प्लास्टिक के कप, प्ल्टे, चम्मच, पाउच आदि) जो वो खाने पीने के बाद चलती रेल गाड़ी से फेंक देते हैं ऐसा करने की बजाए वे उसे अपनी सीट के नीचे ही रख दें ताकि वो कचरा पटड़ी पर पहुँचने की बजाए सीधा गाड़ी की वाशिंग लाइन से ही ट्रैंचिंग ग्राउंड तक पहुंचे.

इस के अलावा जो सफाई के लिए भिखारी आते हैं, रेलवे विभाग को उन पर रोक लगानी चाहीए.इस से हमारी रेल पटड़ीयों के आस पास की जगह भी हमें हरी भरी ही दिखाई देगी तथा हम भी हरियाली से आनन्द विभोर हो सकेंगे.

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